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मन करता है एक दिन तुम्हारे साथ
इतनी सकरी गलियों से गुजरू
कि तुम खुद ही थाम लो मेरा हाथ
तुम्हे पहना दूँ लॉकेट का आधा हिस्सा
और आधा हिस्सा पहन लूँ अपने गले में
तुम्हारे हाथ में दे दू अपने नाम वाला कीरिंग
भर दूँ तुम्हारा वार्डरोब
वैसी ही गुलाबी कमीज से
जो तुम्हें इतनी पसंद है
कि तुम बार बार पहनती हो
मैं दिलाना चाहता हूँ तुम्हे
मेले से वो कान की बालियां
जिसे पहनकर तुम खुद को ही आईने में
तिरछी निगाहों से देखकर शरमाती हो
तुम्हारे बिस्तर का तकिया,
तुम्हारा सबसे पसंदीदा परफ्यूम
तुम्हारा पर्स, तुम्हारा काजल, तुम्हारा फ़ोन
तुम्हारे कमरे की दीवार पर टंगा
तुम्हारी तश्वीरों वाला कोलाज
ये मत समझना जाना कि मैं तुम्हारी खुशियाँ खरीद रहा हूँ
दरअसल इस तरह मैं तुम्हारे सबसे करीब रहना चाहता हूँ
क्योंकि मैं जानता हूँ तुम नहीं रख सकती मुझे अपने सबसे करीब
अपने हाथों पर मेरे नाम का टैटू बनवाकर
शब्दों में पिरोये मेरे अहसास ....
Tuesday, 28 July 2015
Friday, 10 July 2015
'चरित्रहीन'
जब पहली बार तुमने मुझे
२० मिनट तक चूमा
और उस बेहतरीन 'फ्रेंच किस' के बाद
तुमने हंसकर कहा कि तुम तो
मुझसे भी अच्छी तरह किस करती हो
और मैंने यह सुनकर दी थी तुम्हें
एक तिरछी स्माइल
जैसे मैं तो बड़ी एक्सपर्ट रही हूँ
***
और फिर उस शाम जब मैंने कहा
कि मैं नहीं पीती शराब
तो तुमने कहा कि नाक बंद करो
और एक सिप में पी लो
किसी कड़वी दवाई की तरह
फिर भी मेरे न मानने पर
तुमने जिद-जिद में लगायी थी शर्त
कि कौन अपना पैग पहले ख़त्म करता है
फिर हारकर मैंने मान ली तुम्हारी बात
और मुझसे हारने पर तुमने हंसकर कहा
कि तुम तो लगती हो बड़ी दारूखोर
***
और मैंने यह सुनकर दी थी तुम्हें
एक तिरछी स्माइल
जैसे मैं तो बड़ी एक्सपर्ट रही हूँ
***
और फिर उस शाम जब मैंने कहा
कि मैं नहीं पीती शराब
तो तुमने कहा कि नाक बंद करो
और एक सिप में पी लो
किसी कड़वी दवाई की तरह
फिर भी मेरे न मानने पर
तुमने जिद-जिद में लगायी थी शर्त
कि कौन अपना पैग पहले ख़त्म करता है
फिर हारकर मैंने मान ली तुम्हारी बात
और मुझसे हारने पर तुमने हंसकर कहा
कि तुम तो लगती हो बड़ी दारूखोर
***
फिर वैलेंटाइन डे की उस रात
जब तुमने जिद की कि
आज यहीं रुक जाओ मेरे पास
और मैंने भी प्रेम में बेसुध
मान ली तुम्हारी बात
हालाँकि उसके पहले कई बार
मैं कर चुकी थी इंकार
***
और फिर जब हज़ार इंकार के बाद भी
तुम्हारी छटपटाहट को देखकर
मैंने लांघी थी वो 'पवित्रता' वाली रेखा
और आवारा होकर हमने किया था 'सेक्स'
उसके बाद अगली सुबह तुमने
मेरा माथा चूमकर कहा था
कि तुम्हारे जैसी कोई नहीं
***
पिछले हफ्ते 'ब्रेकअप' के बाद
जब मैं भिगो रही थी अपना तकिया
तब सुनने में आया कि हमारी ये अंतरंग बातें
अब हो चुकी हैं सरेआम
और तुमने साबित कर दिया है
इन सब बातों की बुनियाद पर मुझे
'चरित्रहीन'
-एकता नाहर
Tuesday, 16 June 2015
ख़त जलाने के बाद
कुछ सिमटी सिमटी सी रहती हूँ आजकल ...कभी गुम...कभी गुमशुम...अपने सामान में से तुमसे जुडी हर चीज ढूंढ ढूंढ कर मिटा मिटा रही हूँ ...लैपटॉप से तुम्हारे फोटो, अलमारी से तुम्हारे तोहफे, और हाँ वो ख़त भी, जो तुमने मुझे पिछले वेलेंटाइन डे पर दिया था...
अच्छी तरह जानती हूँ, ख़त जलाने से यादें धुँआ नहीं होतीं अफसाने रख नहीं होते ...पर कुछ तो जलेगा ही ....शायद हमारे प्रेम का अस्तित्व और इसकी निशानियाँ भी ...और अब जलने के बाद कुछ भी बाकी नहीं रहेगा क्योंकि इस बार आग की लपटें बहुत तेज़ हैं
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कुछ पन्ने मेरी डायरी के,
ख़त जलाने के बाद
Wednesday, 10 June 2015
ओ जाना

इतनी सकरी गलियों से गुजरू
कि तुम खुद ही थाम लो मेरा हाथ
तुम्हे पहना दूँ लॉकेट का आधा हिस्सा
और आधा हिस्सा पहन लूँ अपने गले में
तुम्हारे हाथ में दे दू अपने नाम वाला कीरिंग
भर दूँ तुम्हारा वार्डरोब
वैसी ही गुलाबी कमीज से
जो तुम्हें इतनी पसंद है
कि तुम बार बार पहनती हो
मैं दिलाना चाहता हूँ तुम्हे
मेले से वो कान की बालियां
जिसे पहनकर तुम खुद को ही आईने में
तिरछी निगाहों से देखकर शरमाती हो
तुम्हारे बिस्तर का तकिया,
तुम्हारा सबसे पसंदीदा परफ्यूम
तुम्हारा पर्स, तुम्हारा काजल, तुम्हारा फ़ोन
तुम्हारे कमरे की दीवार पर टंगा
तुम्हारी तश्वीरों वाला कोलाज
ये मत समझना जाना कि मैं तुम्हारी खुशियाँ खरीद रहा हूँ
दरअसल इस तरह मैं तुम्हारे सबसे करीब रहना चाहता हूँ
क्योंकि मैं जानता हूँ तुम नहीं रख सकती मुझे अपने सबसे करीब
अपने हाथों पर मेरे नाम का टैटू बनवाकर
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कुछ नज़में यूं ही,
कुछ नज्मे मेरी कलम से
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कुछ पन्ने मेरी डायरी के
कविता
एक और डायरी
कुछ नज्मे मेरी कलम से
दिल की आवाज़ ये भी
...और तुम कहते हो मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं लिखती
अब चलना नहीं चढ़ना होगा…
अबकि बार तू सीता बनके मत आना
उत्तर समान हो सकते थे ...
कहानी
कुछ नज़में यूं ही
ख़त जलाने के बाद
चूड़ियाँ टूट ही गईं
तलाश
प्रेम के कोई और मायने हैं क्या
मेरी उड़ान
वो पहली कविता..
वो बस प्रेम ही लिखती
समान्तर रेखाएं

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